स्मरन्त्यश्चापरा: शौरेरनुरागस्मितेरिता: ।
हृदिस्पृशश्चित्रपदा गिर: सम्मुमुहु: स्त्रिय: ॥ १६ ॥
अनुवाद
और अन्य युवतियाँ तो केवल भगवान शौरि (कृष्ण) के शब्दों को याद करके ही बेहोश हो जाती थीं। ये शब्द जब विचित्र पदों से अलंकृत होते थे और स्नेहमयी मुसकान के साथ व्यक्त किए जाते थे, तो ये तरुणियों के दिलों को गहराई से छू जाते थे।