काश्चित्तत्कृतहृत्तापश्वासम्लानमुखश्रिय: ।
स्रंसद्दुकूलवलयकेशग्रन्थ्यश्च काश्चन ॥ १४ ॥
अनुवाद
कुछ गोपिकाओं के हृदय में इतनी पीड़ा थी कि वे सिसकियाँ लेने लगीं और उनके चेहरे पीले पड़ गए। अन्य गोपिकाओं का दुख इतना अधिक था कि उनके वस्त्र, बाजूबंद और जूड़े ढीले पड़ गए।