श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 38: वृन्दावन में अक्रूर का आगमन  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  10.38.25 
 
 
पदानि तस्याखिललोकपाल-
किरीटजुष्टामलपादरेणो: ।
ददर्श गोष्ठे क्षितिकौतुकानि
विलक्षितान्यब्जयवाङ्कुशाद्यै: ॥ २५ ॥
 
अनुवाद
 
  चरन भूमि पर अक्रूर ने उन चरणचिन्हों को देखा जिनकी पवित्र धूल को समस्त ब्रह्मांड के लोकपाल अपने मुकुट में धारण करते हैं। भगवान के वे पदचिह्न जो कमल, जौ की बाली और हाथी के अंकुश जैसे चिह्नों से पहच जाने योग्य थे, भूमि के सौंदर्य को और बढ़ा रहे थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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