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अध्याय 38: वृन्दावन में अक्रूर का आगमन
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श्लोक 24
श्लोक
10.38.24
श्रीशुक उवाच
इति सञ्चिन्तयन्कृष्णं श्वफल्कतनयोऽध्वनि ।
रथेन गोकुलं प्राप्त: सूर्यश्चास्तगिरिं नृप ॥ २४ ॥
अनुवाद
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शुकदेव गोस्वामी ने आगे कहा: हे राजन्, मार्ग पर जाते हुए अक्रूर श्रीकृष्ण के विषय में इस तरह गम्भीरतापूर्वक ध्यान करते करते जब गोकुल पहुँचे तो सूर्यास्त होने वाला था।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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