समेधमानेन स कृष्णबाहुना
निरुद्धवायुश्चरणांश्च विक्षिपन् ।
प्रस्विन्नगात्र: परिवृत्तलोचन:
पपात लण्डं विसृजन् क्षितौ व्यसु: ॥ ७ ॥
अनुवाद
जैसे ही कृष्ण की विस्तारशील भुजा ने केशी का श्वास पूर्णतया अवरुद्ध कर दिया, उसके पैर भड़कने लगे, उसका शरीर पसीने से लथपथ हो गया और उसकी आंखें ऊपर लुढ़कने लगीं। तब उस राक्षस ने मल-मूत्र त्याग दिया और भूमि पर गिर कर मृत हो गया।