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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ
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अध्याय 37: केशी तथा व्योम असुरों का वध
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श्लोक 6
श्लोक
10.37.6
दन्ता निपेतुर्भगवद्भुजस्पृश-
स्ते केशिनस्तप्तमयस्पृशो यथा ।
बाहुश्च तद्देहगतो महात्मनो
यथामय: संववृधे उपेक्षित: ॥ ६ ॥
अनुवाद
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केशी के दांत उसके भगवान श्री हरि की भुजा से ही टूटकर गिर गए, जो उस राक्षस को पिघले हुए लोहे जैसी गर्म लग रही थी। इसके बाद भगवान श्री हरि की भुजा केशी के शरीर में बहुत बड़ी हो गई, जिस तरह लापरवाही से जलोदर रोग हो जाता है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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