श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 37: केशी तथा व्योम असुरों का वध  »  श्लोक 10-11
 
 
श्लोक  10.37.10-11 
 
 
कृष्ण कृष्णाप्रमेयात्मन् योगेश जगदीश्वर ।
वासुदेवाखिलावास सात्वतां प्रवर प्रभो ॥ १० ॥
त्वमात्मा सर्वभूतानामेको ज्योतिरिवैधसाम् ।
गूढो गुहाशय: साक्षी महापुरुष ईश्वर: ॥ ११ ॥
 
अनुवाद
 
  [नारद मुनि बोले:] हे कृष्ण, हे कृष्ण, हे अनंत प्रभु, समस्त योगशक्तियों के स्रोत, ब्रह्माण्ड के स्वामी, समस्त जीवों के आश्रय और यदुश्रेष्ठ वासुदेव! हे प्रभु, आप समस्त जीवों के परमात्मा हैं और हृदय गुफा में उसी तरह अदृश्य होकर विराजमान हैं जिस तरह सुलगती हुई लकड़ी के भीतर अग्नि सुप्त रहती है। आप सबके भीतर साक्षी स्वरूप, परम पुरुष और समस्त नियंत्रक देवता हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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