जब श्रीकृष्ण अपने शुभचिन्तक सखाओं को आदरपूर्वक शुभकामनाएँ देते हैं, तो उनकी आँखें थोड़ी-सी मदिरापान से वशीभूत की तरह घूमती हैं। उन्होंने फूलों की माला पहनी है और उनके कोमल गालों की शोभा उनके सुनहरे कुण्डलों की चमक और बदर बेर के रंग वाले उनके मुख की श्वेतता से बढ़ जाती है। रात्रि के स्वामी चन्द्रमा के समान अपने प्रसन्न मुख वाले यदुपति राजसी हाथी की अदा से चल रहे हैं। इस प्रकार वे संध्या समय घर लौटते हुए अपनी गायों को दिन की गर्मी से मुक्ति दिलाते हैं।