अब कृष्ण कहीं खड़े हैं और रत्नों की माला में गायों की गिनती कर रहे हैं। उन्होंने तुलसी के फूलों की माला पहनी है, जिसमें उनकी प्रियतमा, राधा की सुगंध बसी हुई है। उनके एक हाथ उनके प्रिय ग्वालमित्र के कंधे पर रखा हुआ है। जैसे ही कृष्ण अपनी बाँसुरी बजाते हुए गाते हैं, तो उस गीत से कृष्ण-हिरणों की पत्नियाँ आकर्षित होती हैं और वे दिव्य गुणों के सागर कृष्ण के पास पहुँचकर उनके पास बैठ जाती हैं। वे भी हम गोपियों की तरह पारिवारिक जीवन के सुख की सारी आशाएँ त्याग चुकी हैं।