श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 35: कृष्ण के वनविहार के समय गोपियों द्वारा कृष्ण का गायन  »  श्लोक 18-19
 
 
श्लोक  10.35.18-19 
 
 
मणिधर: क्‍वचिदागणयन् गा
मालया दयितगन्धतुलस्या: ।
प्रणयिनोऽनुचरस्य कदांसे
प्रक्षिपन् भुजमगायत यत्र ॥ १८ ॥
क्‍वणितवेणुरववञ्चितचित्ता:
कृष्णमन्वसत कृष्णगृहिण्य: ।
गुणगणार्णमनुगत्य हरिण्यो
गोपिका इव विमुक्तगृहाशा: ॥ १९ ॥
 
अनुवाद
 
  अब कृष्ण कहीं खड़े हैं और रत्नों की माला में गायों की गिनती कर रहे हैं। उन्होंने तुलसी के फूलों की माला पहनी है, जिसमें उनकी प्रियतमा, राधा की सुगंध बसी हुई है। उनके एक हाथ उनके प्रिय ग्वालमित्र के कंधे पर रखा हुआ है। जैसे ही कृष्ण अपनी बाँसुरी बजाते हुए गाते हैं, तो उस गीत से कृष्ण-हिरणों की पत्नियाँ आकर्षित होती हैं और वे दिव्य गुणों के सागर कृष्ण के पास पहुँचकर उनके पास बैठ जाती हैं। वे भी हम गोपियों की तरह पारिवारिक जीवन के सुख की सारी आशाएँ त्याग चुकी हैं।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.