श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 33: रास नृत्य  »  श्लोक 28
 
 
श्लोक  10.33.28 
 
 
आप्तकामो यदुपति: कृतवान्वै जुगुप्सितम् ।
किमभिप्राय एतन्न: शंशयं छिन्धि सुव्रत ॥ २८ ॥
 
अनुवाद
 
  हे व्रतों के श्रद्धालु पालक, कृपा करके हमें यह बताकर हमारे संदेह का निवारण करें कि पूर्णकाम यदुपति के मन में वह कौन सा उद्देश्य था जिसकी वजह से उन्होंने इतने निंदनीय ढंग से व्यवहार किया?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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