श्रीपरीक्षिदुवाच
संस्थापनाय धर्मस्य प्रशमायेतरस्य च ।
अवतीर्णो हि भगवानंशेन जगदीश्वर: ॥ २६ ॥
स कथं धर्मसेतूनां वक्ता कर्ताभिरक्षिता ।
प्रतीपमाचरद् ब्रह्मन् परदाराभिमर्शनम् ॥ २७ ॥
अनुवाद
परीक्षित महाराज ने कहा, "हे ब्राह्मण, सृष्टि के स्वामी, पूर्ण परमेश्वर भगवान, अधर्म को नष्ट करने और धर्म की पुनर्स्थापना करने के लिए अपने पूर्ण अंश सहित इस पृथ्वी पर अवतरित हुए हैं। दरअसल, वे नैतिक नियमों के मूल वक्ता, अनुयायी और संरक्षक हैं। तो फिर, वे अन्य पुरुषों की पत्नियों को छूकर उन नियमों का उल्लंघन कैसे कर सकते थे?"