तत्रोपविष्टो भगवान् स ईश्वरो
योगेश्वरान्तर्हृदि कल्पितासन: ।
चकास गोपीपरिषद्गतोऽर्चित-
स्त्रैलोक्यलक्ष्म्येकपदं वपुर्दधत् ॥ १४ ॥
अनुवाद
जिन भगवान श्रीकृष्ण के लिए बड़े-बड़े योगी लोग अपने हृदय में आसन की व्यवस्था करते हैं, वही श्रीकृष्ण गोपियों की सभा में आसन ग्रहण करने को तैयार हो गए। उनका दिव्य शरीर, जो तीनों लोकों में सुंदरता और ऐश्वर्य का एकमात्र निवास है, गोपियों द्वारा उनकी पूजा किए जाने पर और भी जगमगा उठा।