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अध्याय 29: रासनृत्य के लिए कृष्ण तथा गोपियों का मिलन
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श्लोक 44
श्लोक
10.29.44
उपगीयमान उद्गायन् वनिताशतयूथप: ।
मालां बिभ्रद्वैजयन्तीं व्यचरन्मण्डयन् वनम् ॥ ४४ ॥
अनुवाद
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जैसे ही गोपियाँ उनकी प्रशंसा गाती हैं, तो सैंकड़ों स्त्रियों के नायक ने तेज आवाज़ में उत्तर गाना शुरू कर दिया। वो अपनी वैजयन्ती माला पहनकर उनके बीच घूम रहे थे और वृन्दावन के जंगल की शोभा बढा रहे थे।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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