का स्त्र्यङ्ग ते कलपदायतवेणुगीत-
सम्मोहितार्यचरितान्न चलेत्त्रिलोक्याम् ।
त्रैलोक्यसौभगमिदं च निरीक्ष्य रूपं
यद् गोद्विजद्रुममृगा: पुलकान्यबिभ्रन् ॥ ४० ॥
अनुवाद
हे कृष्ण, तीन भुवनों में वो कौन सी नारी होगी जो आपकी बाँसुरी की मधुर तान से रोमांचित होकर अपने धार्मिक आचरण से विचलित नहीं हो जाएगी? आपकी सुंदरता तीनों लोकों को मंगलमय बनाती है। वस्तुत: गायें, पक्षी, पेड़ और हिरण तक आपके सुंदर रूप को देखकर रोमांचित हो जाते हैं।