श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 29: रासनृत्य के लिए कृष्ण तथा गोपियों का मिलन  »  श्लोक 39
 
 
श्लोक  10.29.39 
 
 
वीक्ष्यालकावृतमुखं तव कुण्डलश्री-
गण्डस्थलाधरसुधं हसितावलोकम् ।
दत्ताभयं च भुजदण्डयुगं विलोक्य
वक्ष: श्रियैकरमणं च भवाम दास्य: ॥ ३९ ॥
 
अनुवाद
 
  बालों के लहराते गुच्छों से घिरे हुए आपके चेहरे, झुमके से सजे हुए गालों, अमृत से भरे हुए आपके होंठों और आपकी मुस्कुराती हुई निगाहों को देखकर और आपके डर को दूर करने वाले दो बलवान हाथों और भाग्य की देवी के लिए खुशी के एकमात्र स्रोत आपके सीने को देखकर, हम भी आपकी दासियाँ बनना चाहते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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