श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 29: रासनृत्य के लिए कृष्ण तथा गोपियों का मिलन  »  श्लोक 37
 
 
श्लोक  10.29.37 
 
 
श्रीर्यत्पदाम्बुजरजश्चकमे तुलस्या
लब्ध्वापि वक्षसि पदं किल भृत्यजुष्टम् ।
यस्या: स्ववीक्षण उतान्यसुरप्रयास-
स्तद्वद् वयं च तव पादरज: प्रपन्ना: ॥ ३७ ॥
 
अनुवाद
 
  जो लक्ष्मी जी की अनुकम्पा और कृपा की दृष्टि के लिए देवतागण महान प्रयास करते हैं उन्हें भगवान नारायण की छाती पर सदा विराजमान रहने का अनोखा स्थान प्राप्त है। फिर भी वे उनके चरणों की धूल पाने की इच्छुक रहती हैं यद्पि उस धूल में तुलसी जी और प्रभु के अनेक अन्य सेवक भागीदार होते हैं। इसी तरह हम भी आपकी शरण में आकर आपके चरण-कमलों की धूल ग्रहण करना चाहते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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