श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 29: रासनृत्य के लिए कृष्ण तथा गोपियों का मिलन  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  10.29.30 
 
 
प्रेष्ठं प्रियेतरमिव प्रतिभाषमाणं
कृष्णं तदर्थविनिवर्तितसर्वकामा: ।
नेत्रे विमृज्य रुदितोपहते स्म किञ्चित्-
संरम्भगद्गदगिरोऽब्रुवतानुरक्ता: ॥ ३० ॥
 
अनुवाद
 
  यद्यपि कृष्ण उनके प्रियतम थे, और उनके लिए ही उन्होंने अपनी समस्त इच्छाओं का त्याग कर दिया था, किन्तु वे ही उनसे कठोर वचन बोल रहे थे। इसके बावजूद, वे कृष्ण के प्रति अपनी अनन्य भक्ति में अडिग रहीं। अपना रोना बंद करके उन्होंने अपनी आँखें पोंछीं और कांपती हुई रोती हुई बोलीं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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