श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 22: कृष्ण द्वारा अविवाहिता गोपियों का चीरहरण  »  श्लोक 33
 
 
श्लोक  10.22.33 
 
 
अहो एषां वरं जन्म सर्वप्राण्युपजीवनम् ।
सुजनस्येव येषां वै विमुखा यान्ति नार्थिन: ॥ ३३ ॥
 
अनुवाद
 
  जरा देखो, ये पेड़ कितनी अच्छी तरह से सभी प्राणियों का भरण-पोषण कर रहे हैं! इनका जन्म ही सफलता है। इनका आचरण महापुरुषों जैसा है, क्योंकि पेड़ से कुछ माँगने वाला कोई भी व्यक्ति निराश नहीं लौटता।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.