श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 22: कृष्ण द्वारा अविवाहिता गोपियों का चीरहरण  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  10.22.30 
 
 
निदघार्कातपे तिग्मे छायाभि: स्वाभिरात्मन: ।
आतपत्रायितान् वीक्ष्य द्रुमानाह व्रजौकस: ॥ ३० ॥
 
अनुवाद
 
  जब सूर्य की तपन बढ़ गई, तब कृष्ण ने देखा कि सभी वृक्ष उनके ऊपर छाया करके छत्र का काम कर रहे हैं। तब वे अपने ग्वालमित्रों से इस प्रकार बोले।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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