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अध्याय 22: कृष्ण द्वारा अविवाहिता गोपियों का चीरहरण
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श्लोक 17
श्लोक
10.22.17
ततो जलाशयात् सर्वा दारिका: शीतवेपिता: ।
पाणिभ्यां योनिमाच्छाद्य प्रोत्तेरु: शीतकर्शिता: ॥ १७ ॥
अनुवाद
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तत्पश्चात् कड़ाके की शीत से काँपती सारी युवतियाँ अपने अपने हाथों से अपने गुप्तांग ढके हुए जल के बाहर निकलीं।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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