श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 17: कालिय का इतिहास  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  10.17.25 
 
 
इत्थं स्वजनवैक्लव्यं निरीक्ष्य जगदीश्वर: ।
तमग्निमपिबत्तीव्रमनन्तोऽनन्तशक्तिधृक् ॥ २५ ॥
 
अनुवाद
 
  अपने भक्तों को इस प्रकार पीड़ित देखकर, जगत के अनन्त स्वामी तथा अनन्त शक्ति के धारक श्रीकृष्ण ने उस भयंकर वन-अग्नि को निगल लिया।
 
 
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध दस के अंतर्गत सत्रहवाँ अध्याय समाप्त होता है ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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