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अध्याय 14: ब्रह्मा द्वारा कृष्ण की स्तुति
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श्लोक 53
श्लोक
10.14.53
देहोऽपि ममताभाक् चेत्तर्ह्यसौ नात्मवत् प्रिय: ।
यज्जीर्यत्यपि देहेऽस्मिन् जीविताशा बलीयसी ॥ ५३ ॥
अनुवाद
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यदि मनुष्य यह मानने लगता है, कि शरीर "मैं" नहीं है, अपितु "मेरा" है, तो वस्तुतः वह अपने शरीर को स्वयं से कम नहीं समझेगा। इसके उदाहरण के तौर पर, होते हुए, जो कि शरीर के जीर्णशीर्ण मानने का एक कारण है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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