श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 13: ब्रह्मा द्वारा बालकों तथा बछड़ों की चोरी  »  श्लोक 47-48
 
 
श्लोक  10.13.47-48 
 
 
चतुर्भुजा: शङ्खचक्रगदाराजीवपाणय: ।
किरीटिन: कुण्डलिनो हारिणो वनमालिन: ॥ ४७ ॥
श्रीवत्साङ्गददोरत्नकम्बुकङ्कणपाणय: ।
नूपुरै: कटकैर्भाता: कटिसूत्राङ्गुलीयकै: ॥ ४८ ॥
 
अनुवाद
 
  उन सबके चार हाथ थे, जिनमें शंख, चक्र, गदा और कमल धारण किये थे। उनके सिरों पर मुकुट पहने थे, कानों में कुंडल और गलों में जंगली फूलों की मालाएँ थीं। उनके दाहिने सीने के ऊपरी भाग पर लक्ष्मी का चिह्न था। उनकी बाहों में बाजूबंद, गले में शंख जैसी तीन रेखाओं से अंकित कौस्तुभ मणि और कलाइयों में कंगन थे। उनके पाँवों में पायल, टखनों में आभूषण और कमर में पवित्र करधनी थी। वे सभी अत्यंत सुंदर लग रहे थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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