श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 11: कृष्ण की बाल-लीलाएँ  »  श्लोक 39-40
 
 
श्लोक  10.11.39-40 
 
 
क्‍वचिद्वादयतो वेणुं क्षेपणै: क्षिपत: क्‍वचित् ।
क्‍वचित्पादै: किङ्किणीभि: क्‍वचित्कृत्रिमगोवृषै: ॥ ३९ ॥
वृषायमाणौ नर्दन्तौ युयुधाते परस्परम् ।
अनुकृत्य रुतैर्जन्तूंश्चेरतु: प्राकृतौ यथा ॥ ४० ॥
 
अनुवाद
 
  कभी-कभी कृष्ण और बलराम अपनी बाँसुरी बजाते, कभी वे वृक्षों से फल गिराने के लिए गुलेल से पत्थर फेंकते, कभी वे केवल पत्थर फेंकते और कभी-कभी, उनके पैरों में घुँघरू बजते रहते, वे बेल और आमलकी जैसे फलों से फुटबॉल खेलते। कभी-कभी वे अपने ऊपर कंबल डालकर गायों और बैलों की नकल करते और जोर-जोर से आवाज़ करते हुए एक-दूसरे से लड़ते। कभी वे जानवरों की बोलियों की नकल करते। इस तरह वे दोनों सामान्य मानवी बच्चों की तरह खेल का आनंद लेते।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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