प्रदाय मृत्यवे पुत्रान् मोचये कृपणामिमाम् ।
सुता मे यदि जायेरन् मृत्युर्वा न म्रियेत चेत् ॥ ४९ ॥
विपर्ययो वा किं न स्याद् गतिर्धातुर्दुरत्यया ।
उपस्थितो निवर्तेत निवृत्त: पुनरापतेत् ॥ ५० ॥
अनुवाद
वसुदेव ने सोचा: मैं कंस को, जो मृत्युस्वरूप है, अपने सभी पुत्र सौंपकर देवकी के प्राणों की रक्षा कर सकता हूँ। हो सकता है कि कंस मेरे पुत्रों के जन्म से पहले ही मर जाए, या फिर जब उसे मेरे पुत्र के हाथों मरना लिखा है, तो मेरा कोई पुत्र उसे मार ही दे। अभी तो मैं उसे ये वचन दे दूँगा कि मैं उसे अपने सारे पुत्र सौंप दूंगा जिससे कंस अपनी यह धमकी त्याग देगा और यदि आगे चलकर कंस मर जाता है, तो फिर मुझे डरने की कोई बात नहीं रह जाएगी।