श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 98: सीता के लिये श्रीराम का खेद, ब्रह्माजी का उन्हें समझाना और उत्तरकाण्ड का शेष अंश सुनने के लिये प्रेरित करना  »  श्लोक 27-28
 
 
श्लोक  7.98.27-28 
 
 
एवं विनिश्चयं कृत्वा सम्प्रगृह्य कुशीलवौ॥ २७॥
तं जनौघं विसृज्याथ पर्णशालामुपागमत्।
तामेव शोचत: सीता सा व्यतीता च शर्वरी॥ २८॥
 
 
अनुवाद
 
  निश्चय करके भगवान श्री राम ने जनसमूह को विदा कर दिया और लक्ष्मण के साथ अपनी कुटिया में आ गए। वहाँ उन्होंने सीता के बारे में सोचते हुए रात बिताई।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये उत्तरकाण्डेऽष्टनवतितम: सर्ग: ॥ ९ ८॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके उत्तरकाण्डमें अट्ठानबेवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ ९ ८॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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