श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 94: लव-कुश द्वारा रामायण-काव्य का गान तथा श्रीराम का उसे भरी सभा में सुनना  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  7.94.30 
 
 
बाढमित्यब्रवीद् रामस्तौ चानुज्ञाप्य राघवम्।
प्रहृष्टौ जग्मतु: स्थानं यत्रास्ते मुनिपुङ्गव:॥ ३०॥
 
 
अनुवाद
 
  तब श्रीरामचन्द्रजी ने कहा—‘बहुत अच्छा। हम इस काव्य को सुनेंगे।’ तत्पश्चात् श्रीरघुनाथजी की आज्ञा लेकर दोनों भाई कुश और लव प्रसन्नतापूर्वक उस स्थान पर गए, जहाँ मुनिवर वाल्मीकि जी ठहरे हुए थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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