श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 94: लव-कुश द्वारा रामायण-काव्य का गान तथा श्रीराम का उसे भरी सभा में सुनना  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  7.94.27 
 
 
आदिप्रभृति वै राजन् पञ्चसर्गशतानि च।
काण्डानि षट्कृतानीह सोत्तराणि महात्मना॥ २७॥
 
 
अनुवाद
 
  राजन्! उस महात्मा ने आदि से लेकर अंत तक पाँच सौ सर्ग और छह कांडों की रचना की है। इसके अतिरिक्त उन्होंने उत्तरकाण्ड की भी रचना की है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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