तस्मिन् जाते महासत्त्वे पुष्पवर्षं पपात ह।
नभ:स्थाने दुन्दुभयो देवानां प्राणदंस्तथा।
वाक्यं चैवान्तरिक्षे च साधु साध्विति तत् तदा॥ ३६॥
अनुवाद
उस महान् सत्त्वशाली पुत्रका जन्म होनेपर आकाशसे फूलोंकी वर्षा हुई और आकाशमें देवोंकी दुन्दुभियाँ बज उठीं। उस समय अन्तरिक्षमें ‘साधु-साधु’ की ध्वनि सुनायी देने लगी॥ ३६॥