तथा ब्रुवति राजेन्द्रे बुध: परममद्भुतम्।
सान्त्वपूर्वमथोवाच वासस्त इह रोचताम्॥ १९॥
न संतापस्त्वया कार्य: कार्दमेय महाबल।
संवत्सरोषितस्येह कारयिष्यामि ते हितम्॥ २०॥
अनुवाद
‘राजेन्द्र इलके ऐसा कहनेपर बुधने उन्हें सान्त्वना देते हुए अत्यन्त अद्भुत बात कही—‘राजन्! तुम प्रसन्नतापूर्वक यहाँ रहना स्वीकार करो। कर्दमके महाबली पुत्र! तुम्हें संताप नहीं करना चाहिये। जब तुम एक वर्षतक यहाँ निवास कर लोगे, तब मैं तुम्हारा हित साधन करूँगा’॥ १९-२०॥