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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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श्लोक 18
श्लोक
7.89.18
नहि शक्ष्याम्यहं हित्वा भृत्यदारान् सुखान्वितान्।
प्रतिवक्तुं महातेज: किंचिदप्यशुभं वच:॥ १८॥
अनुवाद
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महान तेजस्वी मुनिवर! मेरे सेवक और पत्नी, बेटा आदि परिवार के लोग देश में सुख से रह रहे हैं, मैं उन्हें छोड़कर यहाँ नहीं रह सकता। इसलिए आप मुझसे ऐसी कोई अशुभ बात न कहें, जिससे मुझे अपने प्रियजनों से बिछड़कर यहाँ दुखी होकर रहना पड़े।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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