ईप्सितं तस्य विज्ञाय देवी सुरुचिरानना॥ २७॥
प्रत्युवाच शुभं वाक्यमेवमेव भविष्यति।
राजन् पुरुषभूतस्त्वं स्त्रीभावं न स्मरिष्यसि॥ २८॥
स्त्रीभूतश्च परं मासं न स्मरिष्यसि पौरुषम्।
अनुवाद
देवी पार्वती ने राजा हिमालय के मनोभाव को समझते हुए कहा, "ऐसा ही होगा। राजन! जब आप पुरुष के रूप में रहेंगे, तो आपको अपने स्त्री जीवन की याद नहीं रहेगी। और जब आप स्त्री के रूप में रहेंगे, तो आपको एक महीने तक अपने पुरुषत्व का स्मरण नहीं रहेगा।"