श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 87: श्रीराम का लक्ष्मण को राजा इल की कथा सुनाना – इल को एक-एक मासतक स्त्रीत्व और पुरुषत्व की प्राप्ति  »  श्लोक 27-29h
 
 
श्लोक  7.87.27-29h 
 
 
ईप्सितं तस्य विज्ञाय देवी सुरुचिरानना॥ २७॥
प्रत्युवाच शुभं वाक्यमेवमेव भविष्यति।
राजन् पुरुषभूतस्त्वं स्त्रीभावं न स्मरिष्यसि॥ २८॥
स्त्रीभूतश्च परं मासं न स्मरिष्यसि पौरुषम्।
 
 
अनुवाद
 
  देवी पार्वती ने राजा हिमालय के मनोभाव को समझते हुए कहा, "ऐसा ही होगा। राजन! जब आप पुरुष के रूप में रहेंगे, तो आपको अपने स्त्री जीवन की याद नहीं रहेगी। और जब आप स्त्री के रूप में रहेंगे, तो आपको एक महीने तक अपने पुरुषत्व का स्मरण नहीं रहेगा।"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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