श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 87: श्रीराम का लक्ष्मण को राजा इल की कथा सुनाना – इल को एक-एक मासतक स्त्रीत्व और पुरुषत्व की प्राप्ति  »  श्लोक 24-25h
 
 
श्लोक  7.87.24-25h 
 
 
अर्धस्य देवो वरदो वरार्धस्य तव ह्यहम्॥ २४॥
तस्मादर्धं गृहाण त्वं स्त्रीपुंसोर्यावदिच्छसि।
 
 
अनुवाद
 
  राजन्! जिस पुरुषत्व को तुम वरदान के रूप में प्राप्त करना चाहते हो, उसके आधे भाग को देने वाले तो महादेवजी हैं और शेष आधे भाग का वरदान मैं तुम्हें दे सकती हूँ। अर्थात् तुमने जो सम्पूर्ण जीवन के लिए स्त्रीत्व प्राप्त किया है, उसे मैं आधे जीवन के लिए पुरुषत्व में बदल सकती हूँ। इसलिए तुम मेरा दिया हुआ यह आधा वरदान स्वीकार कर लो। अब तुम जितने भी समय तक स्त्री और पुरुष रहना चाहते हो, वह मुझसे कहो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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