श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 86: इन्द्र के बिना जगत् में अशान्ति तथा अश्वमेध के अनुष्ठान से इन्द्र का ब्रह्महत्या से मुक्त होना  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  7.86.18 
 
 
तत: प्रीत्यान्विता देवा: सहस्राक्षं ववन्दिरे।
विज्वर: पूतपाप्मा च वासव: समपद्यत॥ १८॥
 
 
अनुवाद
 
  तदनंतर देवताओं ने बड़ी प्रीति से सहस्र नेत्रों वाले इन्द्र की वंदना की। इन्द्र बीमारी से मुक्त हो गए और उनका मन पवित्र हो गया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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