श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 86: इन्द्र के बिना जगत् में अशान्ति तथा अश्वमेध के अनुष्ठान से इन्द्र का ब्रह्महत्या से मुक्त होना  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  7.86.17 
 
 
प्रत्यूचुस्तां ततो देवा यथा वदसि दुर्वसे।
तथा भवतु तत् सर्वं साधयस्व यदीप्सितम्॥ १७॥
 
 
अनुवाद
 
  तब सभी देवताओं ने उससे कहा—‘हे दुर्वसे! तू जो कहती है, वह बात सही है। अब जा और अपने मनोवांछित काम को सिद्ध कर ले’॥ १७॥
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.