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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 7: उत्तर काण्ड
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सर्ग 86: इन्द्र के बिना जगत् में अशान्ति तथा अश्वमेध के अनुष्ठान से इन्द्र का ब्रह्महत्या से मुक्त होना
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श्लोक 15
श्लोक
7.86.15
योऽयमंशस्तृतीयो मे स्त्रीषु यौवनशालिषु।
त्रिरात्रं दर्पपूर्णासु वसिष्ये दर्पघातिनी॥ १५॥
अनुवाद
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मेरा तीसरा अंश यौवन के मद से भरी हुई स्त्रियों में निवास करता है। मैं उनमें प्रतिमाह तीन रातें बिताता हूँ और उनके इस अहंकार को नष्ट करता हूँ।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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