श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 85: भगवान् विष्णु के तेज का इन्द्र और वज्र आदि में प्रवेश, इन्द्र के वज्र से वृत्रासुर का वध तथा ब्रह्महत्याग्रस्त इन्द्र का अन्धकारमय प्रदेश में जाना  »  श्लोक 8-9
 
 
श्लोक  7.85.8-9 
 
 
तथा ब्रुवति देवेशे देवा वाक्यमथाब्रुवन्।
एवमेतन्न संदेहो यथा वदसि दैत्यहन्॥ ८॥
भद्रं तेऽस्तु गमिष्यामो वृत्रासुरवधैषिण:।
भजस्व परमोदार वासवं स्वेन तेजसा॥ ९॥
 
 
अनुवाद
 
  देवेश्वर भगवान् विष्णु के ऐसा कहने पर देवता बोले – ‘दैत्यविनाशन! आप जो कहते हैं, वही उचित है, इसमें कोई शक नहीं। आपका कल्याण हो। हमलोग वृत्रासुर का वध करने की इच्छा मन में लेकर यहाँ से लौट जायेंगे। परम उदार प्रभो! आप अपने तेज से देवराज इन्द्र को शक्ति प्रदान करें।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.