श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 85: भगवान् विष्णु के तेज का इन्द्र और वज्र आदि में प्रवेश, इन्द्र के वज्र से वृत्रासुर का वध तथा ब्रह्महत्याग्रस्त इन्द्र का अन्धकारमय प्रदेश में जाना  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  7.85.5 
 
 
अवश्यं करणीयं च भवतां सुखमुत्तमम्।
तस्मादुपायमाख्यास्ये सहस्राक्षो वधिष्यति॥ ५॥
 
 
अनुवाद
 
  ‘‘परंतु तुम सबके उत्तम सुखकी व्यवस्था करना मेरा आवश्यक कर्तव्य है; इसलिये मैं ऐसा उपाय बताऊँगा, जिससे देवराज इन्द्र उसका वध कर सकेंगे॥ ५॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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