श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 85: भगवान् विष्णु के तेज का इन्द्र और वज्र आदि में प्रवेश, इन्द्र के वज्र से वृत्रासुर का वध तथा ब्रह्महत्याग्रस्त इन्द्र का अन्धकारमय प्रदेश में जाना  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  7.85.4 
 
 
पूर्वं सौहृदबद्धोऽस्मि वृत्रस्येह महात्मन:।
तेन युष्मत्प्रियार्थं हि नाहं हन्मि महासुरम्॥ ४॥
 
 
अनुवाद
 
  देवताओं! तुम्हारी प्रार्थना से पहले ही मैं महामना वृत्रासुर से मित्रता के बंधन में बँध चुका हूँ। इसलिए मेरे प्रिय मित्र वृत्रासुर को मारकर तुम्हें प्रसन्न नहीं करूँगा।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.