श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 85: भगवान् विष्णु के तेज का इन्द्र और वज्र आदि में प्रवेश, इन्द्र के वज्र से वृत्रासुर का वध तथा ब्रह्महत्याग्रस्त इन्द्र का अन्धकारमय प्रदेश में जाना  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  7.85.17 
 
 
हतारय: प्रणष्टेन्द्रा देवा: साग्निपुरोगमा:।
विष्णुं त्रिभुवनेशानं मुहुर्मुहुरपूजयन्॥ १७॥
 
 
अनुवाद
 
  देवताओं का शत्रु मारा गया था, इसलिये अग्नि आदि देवता त्रिभुवन के स्वामी भगवान विष्णु को निरंतर स्तुति और पूजा करने लगे। परंतु उनका इन्द्र अदृश्य हो गया था (इसलिए उन्हें बहुत दुःख हो रहा था)।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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