श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 85: भगवान् विष्णु के तेज का इन्द्र और वज्र आदि में प्रवेश, इन्द्र के वज्र से वृत्रासुर का वध तथा ब्रह्महत्याग्रस्त इन्द्र का अन्धकारमय प्रदेश में जाना  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  7.85.15 
 
 
असम्भाव्यं वधं तस्य वृत्रस्य विबुधाधिप:।
चिन्तयानो जगामाशु लोकस्यान्तं महायशा:॥ १५॥
 
 
अनुवाद
 
  ‘निरपराध वृत्रासुरका वध करना उचित नहीं था, अत: उसके कारण महायशस्वी देवराज इन्द्र बहुत चिन्तित हुए और तुरंत ही सब लोकोंके अन्तमें लोकालोक पर्वतसे परवर्ती अन्धकारमय प्रदेशमें चले गये॥ १५॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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