श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 85: भगवान् विष्णु के तेज का इन्द्र और वज्र आदि में प्रवेश, इन्द्र के वज्र से वृत्रासुर का वध तथा ब्रह्महत्याग्रस्त इन्द्र का अन्धकारमय प्रदेश में जाना  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  7.85.13 
 
 
तेषां चिन्तयतां तत्र सहस्राक्ष: पुरंदर:।
वज्रं प्रगृह्य पाणिभ्यां प्राहिणोद् वृत्रमूर्धनि॥ १३॥
 
 
अनुवाद
 
  उन लोगों के सोच ही रहे थे, तभी सहस्रनेत्रधारी इन्द्र ने दोनों हाथों से वज्र उठाकर वृत्रासुर के सिर पर दे मारा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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