श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 85: भगवान् विष्णु के तेज का इन्द्र और वज्र आदि में प्रवेश, इन्द्र के वज्र से वृत्रासुर का वध तथा ब्रह्महत्याग्रस्त इन्द्र का अन्धकारमय प्रदेश में जाना  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  7.85.12 
 
 
दृष्ट्वैव चासुरश्रेष्ठं देवास्त्रासमुपागमन्।
कथमेनं वधिष्याम: कथं न स्यात् पराजय:॥ १२॥
 
 
अनुवाद
 
  देवासुर संग्राम के दौरान, जब देवताओं ने असुरश्रेष्ठ वृत्र को देखा, तो वे भयभीत हो गए और सोचने लगे - "हम इस शक्तिशाली असुर को कैसे हरा पाएंगे? हमें ऐसी कौन सी युक्ति अपनानी चाहिए जिससे हमारी हार न हो?"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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