श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 84: लक्ष्मण का अश्वमेध यज्ञ का प्रस्ताव करते हुए इन्द्र और वृत्रासुर की कथा सुनाना, वृत्रासुर की तपस्या और इन्द्र का भगवान् विष्णु से उसके वध के लिये अनुरोध  »  श्लोक 9
 
 
श्लोक  7.84.9 
 
 
तस्य बुद्धि: समुत्पन्ना तप: कुर्यामनुत्तमम्।
तपो हि परमं श्रेय: सम्मोहमितरत् सुखम्॥ ९॥
 
 
अनुवाद
 
  वृत्रासुर के मन में एक विचार आया कि मैं परम श्रेष्ठ तप करूँ; क्योंकि तप ही परम कल्याण का साधन है। अन्य सभी सुख मोह मात्र हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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