अकृष्टपच्या पृथिवी सुसम्पन्ना महात्मन:।
स राज्यं तादृशं भुङ्क्ते स्फीतमद्भुतदर्शनम्॥ ८॥
अनुवाद
महात्मा वृत्रासुर के राज्य में यह भूमि बिना जोते और बोए ही अन्न पैदा करती थी। यह धन और अनाज से भरपूर थी। इस तरह वह असुर समृद्ध और अद्भुत राज्य का आनंद लेता था।