श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 84: लक्ष्मण का अश्वमेध यज्ञ का प्रस्ताव करते हुए इन्द्र और वृत्रासुर की कथा सुनाना, वृत्रासुर की तपस्या और इन्द्र का भगवान् विष्णु से उसके वध के लिये अनुरोध  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  7.84.8 
 
 
अकृष्टपच्या पृथिवी सुसम्पन्ना महात्मन:।
स राज्यं तादृशं भुङ्‍क्ते स्फीतमद्भुतदर्शनम्॥ ८॥
 
 
अनुवाद
 
  महात्मा वृत्रासुर के राज्य में यह भूमि बिना जोते और बोए ही अन्न पैदा करती थी। यह धन और अनाज से भरपूर थी। इस तरह वह असुर समृद्ध और अद्भुत राज्य का आनंद लेता था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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