श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 84: लक्ष्मण का अश्वमेध यज्ञ का प्रस्ताव करते हुए इन्द्र और वृत्रासुर की कथा सुनाना, वृत्रासुर की तपस्या और इन्द्र का भगवान् विष्णु से उसके वध के लिये अनुरोध  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  7.84.6 
 
 
धर्मज्ञश्च कृतज्ञश्च बुद‍्ध्या च परिनिष्ठित:।
शशास पृथिवीं स्फीतां धर्मेण सुसमाहित:॥ ६॥
 
 
अनुवाद
 
  उस राजा को धर्म का वास्तविक ज्ञान था। वह कृतज्ञ और बुद्धिमान था। वह सावधानीपूर्वक पृथ्वी पर शासन करता था जो धन-धान्य से भरी-पूरी थी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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