श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 84: लक्ष्मण का अश्वमेध यज्ञ का प्रस्ताव करते हुए इन्द्र और वृत्रासुर की कथा सुनाना, वृत्रासुर की तपस्या और इन्द्र का भगवान् विष्णु से उसके वध के लिये अनुरोध  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  7.84.18 
 
 
त्वया हि नित्यश: साह्यं कृतमेषां महात्मनाम्।
असह्यमिदमन्येषामगतीनां गतिर्भवान्॥ १८॥
 
 
अनुवाद
 
  "प्रभो! आपने सदैव इन महान देवताओं की सहायता की है। यह असुर अन्य देवताओं के लिए अजेय है। इसलिए आप हम निर्बल और निराश्रित देवताओं के रक्षक बनें।"
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये उत्तरकाण्डे चतुरशीतितम: सर्ग: ॥ ८ ४॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके उत्तरकाण्डमें चौरासीवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ ८ ४॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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