त्वया हि नित्यश: साह्यं कृतमेषां महात्मनाम्।
असह्यमिदमन्येषामगतीनां गतिर्भवान्॥ १८॥
अनुवाद
"प्रभो! आपने सदैव इन महान देवताओं की सहायता की है। यह असुर अन्य देवताओं के लिए अजेय है। इसलिए आप हम निर्बल और निराश्रित देवताओं के रक्षक बनें।"
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये उत्तरकाण्डे चतुरशीतितम: सर्ग: ॥ ८ ४॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके उत्तरकाण्डमें चौरासीवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ ८ ४॥