श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 84: लक्ष्मण का अश्वमेध यज्ञ का प्रस्ताव करते हुए इन्द्र और वृत्रासुर की कथा सुनाना, वृत्रासुर की तपस्या और इन्द्र का भगवान् विष्णु से उसके वध के लिये अनुरोध  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  7.84.14 
 
 
तं चैनं परमोदारमुपेक्षसि महाबल।
क्षणं हि न भवेद् वृत्र: क्रुद्धे त्वयि सुरेश्वर॥ १४॥
 
 
अनुवाद
 
  महाबली देवेश्वर! उस अति उदार असुर की उपेक्षा तुम क्यों कर रहे हो (इसीलिये वह शक्तिशाली होता जा रहा है)? यदि तुम उस असुर से नाराज़ हो जाओ, तो वह तुम्हारे क्रोध में एक पल भी जीवित नहीं रह सकता।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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