श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 84: लक्ष्मण का अश्वमेध यज्ञ का प्रस्ताव करते हुए इन्द्र और वृत्रासुर की कथा सुनाना, वृत्रासुर की तपस्या और इन्द्र का भगवान् विष्णु से उसके वध के लिये अनुरोध  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  7.84.13 
 
 
यद्यसौ तप आतिष्ठेद् भूय एव सुरेश्वर।
यावल्लोका धरिष्यन्ति तावदस्य वशानुगा:॥ १३॥
 
 
अनुवाद
 
  हे सुरेश्वर! यदि वह इसी तरह फिर तपस्या करेगा, तो जब तक यह संसार बना रहेगा, तब तक सभी देवता भी उसकी अधीनता में रहेंगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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