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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 7: उत्तर काण्ड
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सर्ग 84: लक्ष्मण का अश्वमेध यज्ञ का प्रस्ताव करते हुए इन्द्र और वृत्रासुर की कथा सुनाना, वृत्रासुर की तपस्या और इन्द्र का भगवान् विष्णु से उसके वध के लिये अनुरोध
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श्लोक 12
श्लोक
7.84.12
तपस्यता महाबाहो लोका: सर्वे विनिर्जिता:।
बलवान् स हि धर्मात्मा नैनं शक्ष्यामि शासितुम्॥ १२॥
अनुवाद
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महाबाहो! वृत्रासुर ने घोर तपस्या करके समस्त लोकों पर विजय प्राप्त कर ली है। वह धर्मात्मा और शक्तिशाली हो गया है, इसलिए अब मैं उस पर शासन नहीं कर सकता।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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